बीजं मां सर्वभूतानां विद्धि पार्थ सनातनम् ।
बुद्धिर्बुद्धिमतामस्मि तेजस्तेजस्विनामहम् ॥10॥
बीजम् बीज; माम–मुझको; सर्व-भूतानाम्-समस्त जीवों का; विद्धि-जानना; पार्थ-पृथापुत्र, अर्जुनः सनातनम्-नित्य,; बुद्धिः-बुद्धि; बुद्धि-मताम्-बुद्धिमानों की; अस्मि-हूँ; तेजः-तेज; तेजस्विनाम्-तेजस्वियों का; अहम्-मैं।
BG 7.10: हे अर्जुन! यह समझो कि मैं सभी प्राणियों का आदि बीज हूँ। मैं बुद्धिमानों की बुद्धि और तेजस्वियों का तेज हूँ?
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कारण को ही अपने फल के बीज के रूप में जाना जाता है इसलिए समुद्र को बादलों का बीज माना जा सकता है और बादल वर्षा का जनक होते हैं। श्रीकृष्ण कहते हैं कि जिससे सभी प्राणियों की उत्पत्ति हुई, वे उसका आदि बीज हैं क्योंकि सभी वस्तुएँ जो दिखाई देती हैं, भगवान की शक्ति का रूप हैं। उत्कृष्ट मनुष्यों में प्रदर्शित होने वाले सद्गुण सब भगवान की शक्तियाँ ही हैं जो उनमें प्रकट होती हैं। बुद्धिमान पुरुष अपने विचार और मतों को अत्यंत प्रभावशाली ढंग से व्यक्त करते हैं। भगवान कहते हैं कि वे ऐसी सूक्ष्म शक्ति हैं जो उनके विचारों को सकारात्मक और विश्लेषणात्मक बनाती हैं।
जब कुछ मनुष्य ऐसी असाधारण प्रतिभा प्रदर्शित करते हैं जिससे संसार सकारात्मक दिशा की ओर अग्रसर हो तब उस समय यह भगवान की शक्ति ही होती है जो उनके द्वारा क्रियान्वित होती है। विलियम शेक्सपियर ने साहित्य के क्षेत्र में ऐसी विलक्षण प्रतिभा प्रदर्शित की जिसकी आधुनिक साहित्य से तुलना नहीं की जा सकती। संभवतः भगवान ने उसकी बुद्धि को इतना कुशाग्र बनाया कि उसका साहित्य लेखन का कार्य विश्व की मुख्य भाषा अंग्रेजी को समृद्ध कर सके।
स्वामी विवेकानन्द ने कहा था कि ब्रिटिश साम्राज्य का उद्देश्य संसार को एक भाषा के साथ जोड़ना था। बिल गेट्स ने विपणन के क्षेत्र में ऐसी अभूतपूर्व सफलता पायी है कि माइक्रोसॉफ्ट की विंडो ऑपरेटिंग प्रणाली की विश्व बाजार में 90 प्रतिशत की हिस्सेदारी है। यदि ऐसा न होता तब पूरे विश्व में कंप्यूटर के लिए कई ऑपरेटिंग सिस्टम प्रचलित होते जिससे संसार में अत्यधिक उथल-पुथल होती, जैसे कि वीडियो संपादन क्षेत्र की कई प्रणालियाँ-एन.टी. एस.सी. पॉल, सेकम आदि हैं। संभवतः भगवान की यह इच्छा हुई कि विश्व में केवल एक मुख्य ऑपरेटिंग सिस्टम होना चाहिए जिससे सुचारू अन्तः क्रियाएँ और संपर्क सुनिश्चित किया जा सके। इसलिए भगवान ने इस प्रयोजन के लिए एक ही व्यक्ति की बुद्धि को अति तीक्ष्ण बनाया। संत निश्चित रूप से अपने कार्य के सौंदर्य और ज्ञान को भगवान की कृपा के रूप में स्वीकार करते हैं।
संत तुलसीदास ने वर्णन किया है
न मैं किया न करि सकू, साहिब करता मोर।
करत करावत आप है, तुलसी तुलसी शोर ।।
"न तो मैंने रामायण की रचना की और न ही मैं इसकी रचना करने के योग्य था। भगवान राम मेरे कर्ता हैं। उन्होंने मेरे कार्यों को निर्देशित किया और मुझे माध्यम बनाकर मुझसे काम कराया लेकिन संसार सोचता है कि तुलसी सब कुछ कर रहा है। यहाँ श्रीकृष्ण कहते हैं कि वे सभी प्रतिभाशालियों की प्रतिभा और सभी बुद्धिमानों की बुद्धि हैं।